Patna: बिहार के मिथिलांचल में भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को चौरचन या चौठी चंद्र धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 22 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा। चौरचन के दिन विशेष रूप से चंद्र देव और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं अनुसार, इसी दिन चंद्र देव को कलंक लगा था। इसलिए इस दिन चांद को देख शुभ नहीं माना जाता। मान्यता अनुसार, इस दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। मिथिला में इसके निवारण के लिए रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी को चांद की पूजा की जाती है।
चौरचन के दिन घर की बुजुर्ग महिलाएं व्रत रखती हैं और शाम को चंद्र देव को अर्घ्य देकर व्रत को पूरा करती हैं। माना जाता है कि इस पूजा के करने से भगवान चंद्र देव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
मंत्र
सिंह प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हत:।
सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक:।।
इस दिन सभी व्रती महिलाएं मिट्टी के नए बर्तन में जमाया हुआ दही और विभिन्न प्रकार के पकवान के साथ चंद्र देव का दर्शन करती हैं। कहा जाता है कि इस दिन जमायी हुई दही का स्वाद बहुत ही खास होता है। इसके अलावा इस दिन बांस के बर्तन में खास खीर बनाई जाती है। पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है।
इस त्योहार में महिलाएं गाय के गोबर से लीपकर आंगन एवं घरों को शुद्ध बनाती हैं और कच्चे चावल को पीसकर पिठार बनाती हैं, जिससे घर के आंगन या छत पर पूजा स्थल को आकर्षक अहिपन यानी रंगोली से सजाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि फल और दही लेकर चौठ चंद्रमा के दर्शन में कोई दोष नहीं होता है। आज ही के दिन भगवान विष्णु ने वराह भगवान के रूप में अवतार लेकर भक्तों की मनोकामना पूरी की थी।
भगवान गणेश ने चंद्र देव को दिया था श्राप
कथा के अनुसार एक बार गणेश जी को चंद्रलोक से भोज का आमंत्रण आया तब गणेश जी ने वहां खूब लड्डू खाए और लौटते समय कुछ लड्डू साथ भी ले आए। लौटते समय एक लड्डू उनके हाथ से गिर गया, जिसे देखकर चंद्र देव को हंसी आ गई। इस बात से गणेश जी ने नाराज हो कर चंद्र देव को श्राप दिया कि जो तुम्हें देखेगा उस पर चोरी का इल्जाम लग जाएगा। इसके बाद चंद्र देव ने घबरा कर गणेश जी से श्राप वापस लेने का आग्रह किया।
भगवान गणेश को मनाने के लिए चंद्र देव नें भाद्रपद की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और श्राप को चतुर्थी तक ही सीमित कर दिया। भगवान गणेश ने कहा कि जो भी इस खास मंत्र के साथ गणेश चतुर्थी को चंद्र देव का दर्शन करेगा, उसका जीवन निष्कलंक रहेगा। उनको मिथ्या अपवाद कलंक नहीं लगेगा। इसके बाद से ही यह व्रत मनाया जा रहा है।
चौठी चंद्रमा के दर्शन से श्रीकृष्ण पर लगा था मणि चुराने का आरोप
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, द्वारिकापुरी में सत्राजित नाम का एक राजा था, जिन्होंने सूर्य की आराधना करके स्यमंतक मणि प्राप्त की थी। उस मणि की विशेषता यह थी कि प्रतिदिन आठ भार सोना दिया करती थी। एक दिन राजा सत्राजित के भाई प्रसेन ने मणि को धारण कर लिया और शिकार पर चले गए। एक सिंह ने प्रसेन को मारकर मणि छीन ली। उस सिंह को भी मारकर रीक्षराज जामवंत मणि ग्रहण कर गुफा के अंदर छिप गए।
इधर राजा सत्राजित ने द्वारिका पूरी में अफवाह फैला दी कि श्रीकृष्ण ने ही मणि के लोभ से मेरे भाई को मार दिया। इस कलंक को मिटाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण जामवंत के गुफा में पहुंचे और 28 दिनों तक घोरयुद्ध किया। इसका कोई परिणाम नहीं निकला। इस दौरान जामवंत ने भगवान कृष्ण को पहचान लिया कि वे श्रीराम हैं। श्रीराम ने पुन: जन्म लेने का उनसे वादा किया था। इसके बाद रीक्षराज ने मणि लौटा दी और भगवान श्रीकृष्ण से अपनी बेटी जामवंती का विवाह करा दिया।
श्रीकृष्ण ने मणि सत्राजित कौ लौटा दी। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी सत्यभामा का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से करा दिया। भगवान श्रीकृष्ण को यह कलंक इसलिए लगा था कि क्योंकि चतुर्थी के दिन उनकी नजर चंद्रमा पर पड़ गई थी। इससे मुक्ति पाने के लिए चौठी चंद्रमा की आराधना का विधान किया गया।
इसलिए मिथिलांचल में शुरू हुई थी चौठी चंद्रमा की पूजा
मान्यता अनुसार, चौरचन पर्व मिथिलांचल में विशेष रूप से मनाने का यह महत्व है कि चंद्र देव प्रत्यक्षदेव हैं। जिस समय चंद्र देव श्रापित थे, उस समय सभी ने चन्द्रमा का पूजन करना छोड़ दिया था। जब चन्द्रमा श्राप मुक्त हुए तब से मिथिलांचल में चंद्र देव की पूजा चोरचन के रूप में मनाई जाने लगी। जो भी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को विधि-विधान एवं मंत्रों के द्वारा चन्द्रमा का आराधना एवं पूजन करता है, उनके जीवन में कभी भी मिथ्या कलंक नहीं लगता और सदैव उन पर चन्द्रमा की अनुकूलता बनी रहती है।
हमारा बिहार टीम