Katihar: माछ, पान (betel)और मखाना ये मिथिलांचल (Mithilanchal) की पहचान है। माखाना तो साल में एक बार होता है लेकिन पान और माछ साल भर होता है। यहां के लोग पान (betel) के शौकीन होते हैं। पान खाना न सिर्फ बुजुर्ग और युवाओं में प्रचलित है बल्कि यहां की महिलाएं भी पान खाने के शौकीन होती हैं। लेकिन जिस कोरोना वायरस के सामने दुनिया घुटना टेक चुकी है, उस कोरोना वायरस ने मिथिलांचल के पान की लाली को भी सुर्ख कर दिया है।
मिथिलांचल (Mithilanchal) में पान (betel) का कारोबार भी अन्य कारोबार की तरह ही होता है। पानी की आपूर्ती मिथिलांचल के जिलों में कोलकाता और मालदा से होती है। हालांकि मिथिलांचल (Mithilanchal) के तकीरबन घर में भी छोटे बड़े स्तर से पान का पौधा लगा हुआ मिल जाएगा। लेकिन कारोबार के लिए पश्चिम बंगाल से ही यहां पान आता है। लेकिन जिन बाजारों में पान का थोक बिक्री हुआ करता था वहां अब पान नहीं आ रहा है। ऐसे में पानी स्थानीये लोगों को पानी की परेशानी हो रही है।
आपको ये भी बता दें कि मिथिलांचल (Mithilanchal) और बंगाल के समाज की संस्कृति मिश्रित है। दोनों ही जगह पान और माछ का चलन है। दोनों की जगह पान आपको हर दालान पर अतिथियों के स्वागत के लिए रखा हुआ मिल जाएगा। लेकिन लॉकडाउन (Lockdown) ने दालानों से पनबट्टा को उठा दिया है और होंठों पर लाला मुस्कन छींटने वाला पान (betel) अब उदासी में बदल गया है। लोग अब पान के बदले स्वागत में सौंफ और सुपारी से काम चला रहा है।
पान (betel) अब बाजार में आ नहीं रहा है इसलिए डिमांड इसका बढ़ गया। लेकिन कुछ जगहों पर जहां अभी स्टॉक है, वहां पान की कीमत को बढ़ा दिया गया है। जिससे लोगों को अब पान खाने के लिए ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है। बाजार में मीठा पत्ता पान चार सौ रुपये थापी तो बंगला पत्ता पान दो सौ रुपये थापी तक बिक रहा है।
हालात ऐसे हो गए जो लोग पान (betel) खाने से पहले कई बार दुकान वाले से पान के पत्तों की गुणवत्ता और कहां का है इसके बारे में जानकारी लेते थे और फिर पान खाते थे या फिर लेते थे वो अब गुणवत्ता देखे बगैर ही सिर्फ पान के नाम पर पत्ता खऱीद रहे हैं।
हमारा बिहार टीम