पटना: इस साल 9 मार्च 2020 को होलिका दहन और 10 मार्च 2020 को रंगों का त्योहार मनाया जाएगा। नौ मार्च को होलिका दहन का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल से मध्यरात्रि से कुछ समय पूर्व तक है। प्रदोष काल सूर्यास्त 6:42 बजे से लेकर निशामुख रात्रि 11 बजकर 26 मिनट तक है। होलिका दहन के दिन सुबह 6:08 मिनट से लेकर दोपहर 12:32 बजे तक भद्रा है। भद्रा को विघ्नकारक माना गया है। मथुरा में श्री कृष्ण जन्म स्थान के पूजाचार्य आचार्य पं. श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद अवस्थी बताते हैं कि भद्रा में होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फल मिलते हैं। इसी भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जाता है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
- होलिका दहन की तिथि: 9 मार्च 2020
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 9 मार्च 2020 को सुबह 3 बजकर 3 मिनट से
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 मार्च 2020 को रात 11 बजकर 17 मिनट तक
- होलिका दहन मुहूर्त: शाम 6 बजकर 26 मिनट से रात 8 बजकर 52 मिनट तक
होलिका दहन का महत्व
होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है. होली से एक दिन पहले किए जाने वाले होलिका दहन की महत्ता भी सर्वाधिक है. होलिका दहन की अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है. होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती. जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले. होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं.
होलिका दहन 2020 पूजा की विधि
होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ होलिका की पूजा करें। इस दौरान होलिका के सामने पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके पूजा करने का विधान है। पहले होलिका को आचमन से जल लेकर सांकेतिक रूप से स्नान के लिए जल अर्पण करें। इसके पश्चात कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना है। सूत के माध्यम से उन्हें वस्त्र अर्पण किये जाते हैं। फिर रोली, अक्षत, फूल, फूल माला, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के बाद लोटे में जल लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, सुगन्ध मिला कर अघ् र्य दें। इस दौरान नई फसल के कुछ अंश जैसे पके चने और गेंहूं, जौं की बालियां भी होलिका को अर्पण करने का विधान है।
कैसे करें होलिक दहन की पूजा?
- होलिका दहन के शुभ मुहूर्त से पहले पूजन सामग्री के अलावा चार मालाएं अलग से रख लें.
- इनमें से एक माला पितरों की, दूसरी हनुमानजी की, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की होती है.
- अब दहन से पूर्व श्रद्धापूर्वक होली के चारों ओर परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटते हुए चलें.
- परिक्रमा तीन या सात बार करें.
- अब एक-एक कर सारी पूजन सामग्री होलिका में अर्पित करें.
- अब जल से अर्घ्य दें.
- अब घर के सदस्यों को तिलक लगाएं.
- इसके बाद होलिका में अग्लि लगाएं.
- मान्यता है कि होलिका दहन के बाद जली हुई राख को घर लाना शुभ माना जाता है.
- अगले दिन सुबह-सवेरे उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पितरों का तर्पण करें.
- घर के देवी-देवताओं को अबीर-गुलाल अर्पित करें.
- अब घर के बड़े सदस्यों को रंग लाकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए.
- इसके बाद घर के सभी सदस्यों के साथ आनंदपूर्वक होली खेलें.
राशियों के अनुसार होलिका में डालें आहुति
- मेष और वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति दें।
- वृष राशि वाले होलिका में चीनी की
- मिथुन और कन्या राशि के लोग कपूर की
- कर्क के लोग लोहबान की
- सिंह राशि के लोग गुड़ की
- तुला राशि वाले कपूर की
- धनु और मीन के लोग जौ और चना की
- मकर व कुंभ वाले तिल कr होलिका दहन में आहुति दें।
आचार्य पं. श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद अवस्थी