बक्सर
मेला कोई भी हो उसका अपना ही अंदाज होता है और लोगों के मन में उसके प्रति अलग ही उत्सुकताएं होती हैं। लेकिन आज हम जिस मेले की बात करने जा रहे हैं वो अपने आप में अनोखा मेला है। इसकी खासियत भी अलग है। हम बात कर रहे हैं बिहार के सबसे पसंदीदा भोजन लिट्टी-चोखा की। लिट्टी-चोखा वैसे तो अब किसी पहचान की मोहताज नहीं है क्योंकि देश ही नहीं विदेशो में भी लिट्टी-चोखा ने अपनी अलग जगह बना ली है। हर कोई लिट्टी-चोखा की खासियत से वाकिफ है। लेकिन क्या आपको पता है, बिहार में इस पंसदीदा भोजन के लिए मेले का भी आयोजन होता है। जी हां, इसके लिए मेले का आयोजन होता है।
वैसे तो देश के लगभग हर राज्य में पूरे साल कई तरह के मेले का आयोजन होता है लेकिन बिहार के बक्सर जिले में अगहन माह के दौरान लगने वाला ‘लिट्टी-चोखा’ मेला कई मामलों में बेहद अनूठा और ख़ास है। राजधानी पटना से करीब 150 किलोमीटर दूर बक्सर जिले में आयोजित होने वाले पंचकोशी परिक्रमा सह पंचकोश मेले की ख्याति बिहार में नहीं बल्कि देश भर में है। विश्व विख्यात बक्सर के इस मेले को लोग लिट्टी-चोखा मेला के नाम से भी जानते हैं। वैसे तो बिहार के कई व्यंजनों के देश-दुनिया के लाखों दिवाने हैं लेकिन जब बात ‘लिट्टी-चोखा’ की हो तो फिर क्या कहने। पंचकोशी परिक्रमा सह पंचकोश मेला बुधवार से आरंभ हो गया है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। जिले की पहचान बन चुके इस मेले को प्रदेश के साथ-साथ गैर प्रदेशों और जिलों में बसे लोग भी याद रखते हैं। एक दूसरे का समाचार पूछने वाले लोग अक्सर सवाल करते हैं, बक्सर में लिट्टी-चोखा मेला कब बा?
अगर शास्त्रीय मान्यता के अनुसार देखा जाए तो मार्गशीर्ष अर्थात अगहन माह के कृष्ण पंचमी को मेला प्रारंभ होता है। पहले दिन अहिरौली, दूसरे दिन नदांव, तीसरे दिन भभुअर, चौथे दिन बड़का नुआंव तथा पांचवेx दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा-खाया जाता है। इस बार 12 नवंबर को चरित्रवन में लिट्टी-चोखा बनेगा।
मेले की परिक्रमा में शामिल लोग इन पांचों स्थान पर जाते हैं। विधिवत दर्शन पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम विश्वामित्र मुनि के साथ सिद्धाश्रम आए थे। यज्ञ में व्यवधान पैदा करने वाली राक्षसी ताड़का एवं मारीच-सुबाहू को उन्होंने मारा था। इसके बाद इस सिद्ध क्षेत्र में रहने वाले 5 ऋषियों के आश्रम पर भगवान राम आर्शीवाद लेने गये थे। जिन 5 स्थानों पर वे गए, वहां रात्रि विश्राम किया। मुनियों ने उनका स्वागत जिस पदार्थ से किया उसे वो प्रसाद स्वरुप देकर किया। उसी परंपरा के अनुरुप यह मेला यहां आदि काल से अनवरत चलता आ रहा है।
हमारा बिहार टीम