पटना: उत्सवों की धरती मिथिलांचल में भाई-बहनों के बीच स्नेह के लोकपर्व सामा-चकेवा को लेकर तैयारियां अंतिम चरण पर हैं। मिथिला की धरती पाश्चात्य सांस्कृति से अछूती नहीं है। बावजूद इसके यहां लोकआस्था एवं लोकाचार की प्राचीन परम्परा से जुड़े पर्व पूरे उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मिथलांचल में मनाया जाता है। इतना ही नहीं मिथिलांचल में रक्षाबंधन और भैया दूज के अलावा इस पर्व को भी भाई-बहनों के प्रेम का अटूट प्रतीक माना गया है।
कब मनाया जाता है यह पर्व?
जब सर्दियों के मौसम में हिमालय के पक्षी मैदानी इलाकों की ओर बढ़ते हैं तब रंगीन पक्षियों के आगमन के साथ, सामा-चकेवा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से सामा-चकेवा के मूर्ति की खरीदारी शुरू हो जाती है।
कैसे मानते हैं यह पर्व ?
मिथिलांचल में सामा-चकेवा की तैयारियां दीपावली के समय से ही शुरू हो जाती हैं। लड़कियां विभिन्न पक्षियों की मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं और उन्हें अपने पारंपरिक तरीकों से सजाती हैं। इस पर्व में विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं और फिर यह उत्सव खुशी से सामा की ‘विदाई’ के साथ समाप्त होता है।
क्या है इसकी मान्यता?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस त्योहार को पहली बार भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा ने अपने भाई के जीवन की खुशहाली के लिए मनाया था। इस पर्व के दौरान बहन अपने भाई के लम्बी उम्र एवं खुशियों की मंगलकामना करती हैं। तभी से यह भाई-बहन का पर्व मिथिलांचल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह छठ पर्व के खरना वाले दिन से प्रारंभ होकर कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन विदाई विसर्जन के साथ संपन्न होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महिलाएं वस्त्र, अन्न, सामान आदि देकर सामा की विदाई करती हैं।