Patna: उत्तर बिहार के दूरस्थ क्षेत्र के लोगों के 90 साल का सपना अब साकार होने जा रहा है। कोसी महासेतु (Kosi River) पर सहरसा-मधुबनी के बीच बन रहा रेल पुल बनकर लगभग तैयार हो गया है, जिसे जल्द ही राष्ट्र को समर्पित कर दिया जाएगा। इसकी तैयारी अंतिम चरण में है। विगत 23 जून को इस नवनिर्मित रेल पुल पर पहली बार ट्रेन का सफलता पूर्वक परिचालन किया गया।
रेलवे द्वारा जुलाई के अंत तक इस महासेतु को सामान्य रूप से ट्रेन परिचालन के लिए चालू करने की तैयारी है। इस पुल से शुरू होने के बाद निर्मली से सरायगढ़ तक की दूरी दरभंगा-समस्तीपुर-खगड़िया-मानसी-सहरसा होते हुए 298 किलोमीटर का है, जो मात्र 22 किलोमीटर में सिमट जाएगी।
बिहार में कोसी नदी की धाराओं का विस्थापन पिछले 100 वर्षों में लगभग 150 किलोमीटर के दायरे में होता रहा है। कोसी नदी के दोनों किनारों को जोड़ने में यह एक बहुत बड़ी रुकावट थी। पुल का निर्माण निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच किया गया है। निर्मली जहां दरभंगा-सकरी-झंझारपुर मीटर गेज लाइन पर अवस्थित एक टर्मिनल स्टेशन था। वहीं सरायगढ़ सहरसा और फारबिसगंज मीटर गेज रेलखंड पर अवस्थित था।
सन् 1887 में बंगाल नॉर्थ वेस्ट रेलवे ने निर्मली और सरायगढ़ भपटियाही के बीच एक मीटर गेज रेल लाइन का निर्माण किया था। उस समय कोसी नदी का बहाव इन दोनों स्टेशनों के मध्य नहीं था। उस समय कोसी की एक सहायक नदी तिलयुगा इन स्टेशनों के मध्य बहती थी, जिसके ऊपर लगभग 250 फीट लंबा एक पुल था।
कोसी नदी के पश्चिम दिशा में उत्तरोत्तर विस्थापन के क्रम में सन 1934 में यह पुल ध्वस्त हो गया एवं कोसी नदी निर्मली एवं सरायगढ़ के बीच आ गई। कोसी की मनमानी धाराओं को नियंत्रित करने का सफल प्रयास पश्चिमी और पूर्वी तटबंध तथा बैराज निर्माण के साथ 1955 में शुरू हुआ। पूर्वी और पश्चिमी छोर पर 120 किलोमीटर का तटबंध 1959 में पूरा कर लिया गया और 1963 में भीमनगर में बैराज का निर्माण भी पूरा कर लिया गया। इन तटबंधों तथा बैराज ने कोसी नदी के अनियंत्रित विस्थापन को संयमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसके कारण इस नदी पर पुल बनाने की परियोजना सकार रूप ले सकी।
रेलवे के मुताबिक, कोविड 19 महामारी के दौरान भी पूर्व-मध्य रेलवे सभी स्वास्थ्य सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए परियोजना को अंतिम रूप देने के लिए लगातार कार्यरत है। कार्य पूरा होने के बाद कोसी महासेतु सहित निर्मली सरायगढ़ रेलखंड को राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि कोसी नदी संपूर्ण बिहार प्रदेश को ही नहीं, बल्कि समग्र भारत और नेपाल की प्रमुख नदियों में अन्यतम मानी जाती है। यह बराह क्षेत्र कुसहा तथा चतरा स्थानों से होते हुए बिहार की सीमा में सहरसा जिले के बीरपुर और भीमनगर स्थानों से प्रवेश करती है।
लगभग 1.9 किलोमीटर लंबे नए कोसी महासेतु सहित 22 किलोमीटर लंबे निर्मली सरायगढ़ रेलखंड का निर्माण वर्ष 2003-04 में शुरू हुआ था। इसके लिए 323.41 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई थी। 6 जून 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस परियोजना का शिलान्यास किया था। परियोजना की संशोधित अनुमानित लागत 516.02 करोड़ बताया जा रहा है।
आपको बता दें कि 1934 में प्रयलंकारी भूकंप में पुल के ध्वस्त होने के बाद सुपौल से मधुबनी का संपर्क पूरी तरह से कट गया था। लेकिन इस नए पुल के तैयार होने से उत्तर भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ने के लिए वैकल्पिक मार्ग मिलेगा। कोसी महासेतु होकर दिल्ली से गोरखपुर-सीतामढ़ी-दरभंगा-सकरी-निर्मली-सरायगढ़-फारबिसगंज के रास्ते पूर्वोत्तर भारत जाने के लिए एक छोटा रास्ता मिलेगा। वहीं सुपौल से अररिया गलगलिया के रास्ते न्यू जलपाईगुड़ी होते हुए गुवाहाटी तक लंबी दूरी की ट्रेनों का परिचालन आसानी से किया जा सकेगा। नवनिर्मित कोसी महासेतु से जल्द ही रेल परिचालन शुरू होने की उम्मीद है।
हमारा बिहार टीम