Patna: बिहार के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक राजद नेता तेजस्वी यादव और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कोरोना महामारी से बचावे के लिए आज मिथिला पेंटिंग का सहारा लिया और मिथिला पेंटिंग से बने मास्क पहनने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। आपको बता दें कि हाथ से बनाए जाने वाले फेस मास्क सिर्फ कोविड-19 से लोगों की रक्षा नहीं कर रहे हैं बल्कि यह कई लोगों के लिए आजीविका भी पैदा कर रहा है।
जब लॉकडाउन के दौरान लोगों का रोजगार छिन गया और लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो गए, उस वक्त बिहार के मधुबनी के कलाकारों के लिए ये हाथ से बनाए गए फेस मास्क महामारी के समय में पैसा कमाने का एकमात्र तरीका बन गए।
बिहार के मधुबनी में अपने माता-पिता और तीन छोटी बहनों के साथ रहने वाले कलाकार रजनीश ने अपनी आजीविका कमाने के लिए मास्क बनाने शुरू कर दिए। रजनीश लॉकडाउन के दौरान अपने बनाए गए मास्क को बेचने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर मिथिला मास्क और मिथिला पेंटिंग के लिए लोगों का जो उत्साह है उससे मैं चकित हूं।
यह सब तब शुरू हुआ जब रजनीश ने अपनी बहन के साथ मास्क बनाने के लिए विचार साझा किया, जो एक दशक से मिथिला पेंटिंग बनाने का काम कर रही हैं। मिथिला मास्क की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि अब इसे अमेजन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा बेचा जा रहा है।
31 साल के रजनीश ने कहा कि मास्क-निर्माता कपड़े और रंगों की गुणवत्ता का बहुत ध्यान रखते हैं, ताकि यह दैनिक उपयोग के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हो। हम मास्क के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कपड़े और जैविक रंगों का उपयोग करते हैं। ग्राहक सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। पेंटिंग से लेकर पैकिंग तक की पूरी प्रक्रिया मेरी बहनों द्वारा की जाती है और मैं बिक्री विभाग का प्रबंधन करता हूं।
हालांकि मिथिला पेंटिंग बने हुए मास्क का कारोबार बहुत ही कम लाभ का कारोबार है। क्योंकि यहां प्रतिस्पर्धा की वजह से कलाकार कम कीमतों पर मास्क बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं। यहां तक कि एक मास्क की कीमत महज 50 से 70 रुपया होता है। लेकिन यही मास्क जब थर्ड पार्टी के माध्यम से ई-कॉमर्स कंपनी तक पहुंचती है तो लोगों के लिए इसकी कीमत 200 या इससे ऊपर होती है।
रजनीश ने आगे कहा कि मिथिला पेंटिंग बनाना बहुत ही धैर्य का काम है। इसे बनाने के लिए बहुत समय लगता है। लेकिन हम इसकी कीमत नहीं बढ़ा सकते हैं। अगर हम इसकी कीमत बढ़ाते हैं तो लोग दूसरे के पास जा कर इसे खरीद लेंगे और इस दौर में अपना कस्टमर खोने का जोखिम कोई नहीं उठा सकता है।
राजनीश ने कहा कि स्थानीय कलाकारों को राज्य सरकार के द्वारा कोई बढ़ावा नहीं मिलता है। हालांकि मीडिया के समाने शासन और प्रशासन इसे बढ़ावा देने की बात तो करती है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
कलाकारों के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताते हुए, रजनीश ने कहा कि उनकी बहन गुडिया, जिन्हें 2019 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मधुबनी डिजाइनों को चित्रित करने का मौका मिला था, उन्हें जो वादा किया गया था वो तो नहीं मिला। साथ ही मेहनत का आधा भुगतान भी नहीं मिला है। हम भुगतान के लिए उनसे (एजेंट) पूछते रहे और वह यह कह कर टाल मटोल करते रहे कि उन्हें ऊपर अधिकारियों से पैसे नहीं मिले हैं।
भारत अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। द हिंदू के एक लेख के अनुसार, कृषि के बाद हस्तकला, और हथकरघा ग्रामीण भारत में दूसरा सबसे अधिक आय वाला क्षेत्र है। स्थानीय और गरीब कलाकारों की बेहतरी को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ जैसी विभिन्न नीतियां शुरू की हैं। लेकिन इसके बावजूद भी मधुबनी के कलाकार बिहार की इस कला को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मधुबनी कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए एक संस्था, मधुबनी के विकास आयुक्त और मधुबनी हैंडलूम के सहायक निदेशक मुकेश कुमार ने कहा, “हम उन लोगों के लिए एक मंच प्रदान करते हैं, जो कला के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं। परीक्षण और जो लोग अर्हता प्राप्त करते हैं, हम उन्हें अपने प्रशिक्षण केंद्रों में भेजते हैं। वे हर दिन मुफ्त टूल किट और 300 रुपये का स्टाइपेंड प्राप्त करते हैं। इन केंद्रों को स्थापित करने के पीछे हमारा मुख्य उद्देश्य अपने कौशल को चमकाना है और सर्वश्रेष्ठ को बाहर आने देना है। वे सीखते हैं और उनकी कला को बाहर निकालते हैं। हम उनकी कृतियों को विभिन्न प्लेटफार्मों पर बेचने में भी उनकी मदद करते हैं ताकि उन्हें प्रत्यक्ष लाभ मिल सके। ”
कुमार ने कहा कि कलाकारों को ऋण सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। 2019-2020 में, सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत, 367 कलाकारों को ऋण स्वीकृत किया गया था। उन्होंने कहा, “प्रत्येक कलाकार को अपना उद्यम शुरू करने के लिए 50 से 60 हजार मिलते हैं। हम उन्हें एक आईडी कार्ड प्रदान करते हैं ताकि वे भारत के आसपास किसी भी कार्यक्रम जैसे हस्तिल्प मेला, दिल्ली हाट, गांधी शिल्प बाजार, और इसी तरह के अन्य कार्यक्रमों में भाग ले सकें।”
हालांकि ये सभी कागजी ही लगते हैं कि सरकार कलाकारों का ध्यान रख रही है, कई स्थानीय लोग इस तरह के दावों का खंडन करते हैं। 25 वर्षीय राजनीति विज्ञान के छात्र और कलाकार जितेंद्र दावों से इनकार करते हैं। जितेंद्र कहते हैं कि “नीतियों के नाम पर, ये लोग अपनी जेब भर रहे हैं। इन केंद्रों में, कलाकारों को पेंटिंग पर अपना नाम लिखने की अनुमति नहीं है क्योंकि एजेंट लाभ और प्रचार पाने के लिए उन चित्रों में अपना नाम जोड़ता है। मेहनत आपकी और लाभ कोई और उठाता है।
ये कहानी सिर्फ एक कलाकार के घर तक ही समित नहीं होता है। मिथिलांचल और खास कर मधुबनी जिले की बात करें तो हर में रोजगार के नाम पर मिथिला पेंटिंग बनाया जा रहा है। जिसके पास नौकरी नहीं है वो फिलहाल अपन सभ्यता और संस्कृति के बल पर अपना भर पोषण करते हैं। आपको जानकारी हो कि मधुबनी जिला अति पिछड़े जिलों में आता है। यहां हर साल बाढ़ आती है और शहर से लेकर गांव तक सब विकास में पिछड़ जाता है। ऐसे में मिथिला पेंटिंग आज के समय में एक बार फिर से वरदान साबित हो रहा है।
हमारा बिहार टीम